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Author: Santosh Singh
Brand: Vani Prakashan
Edition: First Edition
Binding: paperback
Number Of Pages: 148
Release Date: 09-04-2024
Details: संतोष सिंह की कविताओं का वायुमण्डल विस्तृत और सघन है। बचपन की स्मृतियों से लेकर घर-परिवार के अनुभव और बृहत्तर सामाजिक-राजनैतिक प्रसंगों तक प्रशस्त ये कविताएँ पाठक के हृदय के समस्त तारों को झंकृत कर देती हैं। बचपन के खेल और सरस्वती पूजा के आख्यान सामूहिक स्मृतियाँ हैं और तत्काल पाठक को कवि से जोड़ देती हैं। कवि ने तब के शब्दों, मुहावरों को मिश्रित कर अद्भुत काव्य रसायन तैयार किया है जो अपनी विशिष्ट लय से मुग्ध कर देता है। कौटुम्बिक सम्बन्धों पर संतोष जी ने कुछ मार्मिक कविताएँ लिखी हैं। बहन, बेटी, पत्नी उनकी कविता के स्थायी नागरिक हैं। स्त्रियों के प्रति लिखित उनकी कविताएँ अद्वितीय हैं। 'कटे पेड़ की तरह रोज़ गिरती हूँ - यह एक बिम्ब समस्त स्त्री जाति की व्यथा का समाहार करता है। कवि ने लोलुप, लम्पट समाज की तीखी भर्त्सना करते हुए हमारे चतुर्दिक नैतिक पतन की भर्त्सना की है। संतोष जी की कविताओं का एक आयाम दार्शनिकता भी है। कवि के चिन्तन की अनमोल छवियाँ यहाँ अंकित हैं। जीवन, ब्रह्माण्ड, ईश्वर, त्रासदी सब पर चिन्तन-मनन मिलता है। 'महाभारत' के अनेक प्रसंगों के माध्यम से यह चिन्तन-श्रृंखला आगे बढ़ती है। प्रकाश और तम के आदि युग्म पर विशेष विचार हुआ है। कवि का प्रश्न है कि 'गीता' का आरम्भ धृतराष्ट्र उवाच से ही क्यों होता है- 'कभी सोचा क्यों शुरू होती है 'श्रीमद्भगवद्गीता' धृतराष्ट्र उवाच से?' यह एक मौलिक प्रश्न है, परेशान करने वाला। कवि अनेकानेक दैनन्दिन स्थितियों पर भी विचार करता है। मकान बनाये जाते हैं, घर तो खुद ही बनता है, यह कवि का कथन है। पुस्तक के अन्त तक आते-आते हम पाते हैं कि हमने एक लम्बी दूरी तय कर ली है और एक काव्य-पंक्ति हमें टेक की तरह प्राप्त होती है- 'प्रेम, करुणा और सहअस्तित्व ही एकमात्र उपाय है'। संतोष सिंह के कवि की यही आधार-भूमि है। - अरुण कमल
EAN: 9789357755788
Package Dimensions: 9.1 x 6.3 x 0.6 inches
Languages: Hindi