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Author: Dharmpal Mahendra Jain

Brand: Vani Prakashan

Edition: 2nd

Binding: hardcover

Number Of Pages: 136

Release Date: 23-11-2023

Details: भीड़ और भेड़िए - बस को... दायीं तरफ़ से आईएएस धक्का ला रहे हैं। बायीं तरफ़ मन्त्रीगण लगे हैं। पीछे से न्यायपालिका दम लगा के हाइशा बोल रही है और आगे से असामाजिक तत्व बस को पीछे ठेल रहे हैं।... गाड़ी साम्य अवस्था में है। गति में नहीं आती इसीलिए स्टार्ट नहीं होती। प्रजातन्त्र की बस सिर्फ़ चर्र-चूँ कर रही है। ड्राइवर का मन बहुत करता है कि वह धकियारों को साफ़-साफ़ कह दे कि एक दिशा में धक्का लगाओ। धकियारे उसकी नहीं सुनते, वे कहते हैं तुम्हारा काम आगे देखना है, तुम आगे देखो, पीछे हम अपना-अपना देख लेंगे। प्रजातन्त्र की बस यथावत खड़ी है। (प्रजातन्त्र की बस) मन्त्री के तलवों में चन्दन ही चन्दन लगा था तब रसीलाजी और सुरीलीजी ने मन्त्रीवर की जय-जयकार करते हुए कहा नाथ आपके पुण्य चरण हमारे भाल पर रख दें। मन्त्रीवर संस्कृति रक्षक थे, नरमुंडों पर नंगे पैर चलने में प्रशिक्षित थे। उन्होंने सुरीलीजी व रसीलाजी के भाल पर अपने चरण टिका दिये। कलाकार की गर्दन में लोच हो, रीढ़ में लचीलापन हो, घुटनों में नम्यता हो और पवित्र चरणों पर दृष्टि हो तो मन्त्रीवर के चरण तक कलाकार का भाल पहुँच ही जाता है। (भैंस की पूँछ ) साठोत्तरी साहित्यकार... जो साठ बसंत पार कर चुका है और अब वह स्थिरप्रज्ञ हो गया है, न उम्र बढ़ रही है, न ज्ञान। हिन्दी साहित्य के वीरगाथाकाल से लगाकर भक्तिकाल में ऐसे साहित्यकारों को सठियाया कहा गया है। अति आधुनिककाल में गृह मन्त्रालय, ज्ञानपीठें, सृजन पीठें, भाषा परिषदें और अकादमियाँ अस्सी वर्ष की औसत उम्र के साहित्यकारों को सठियाया नहीं मानती। (साठोत्तरी साहित्यकारों का खुलासा) हाईकमान आईनों के मालिक थे। आईने होते ही इसलिए हैं कि आईने का मालिक जिसे जब चाहे आईना दिखा दे। हाईकमान ने उन्हें उत्तल दर्पण के सामने खड़ा कर दिया। उत्तल दर्पण बड़े को बौना बना देता है। आईने में अपना बौना रूप देखकर गुड्डू भैया शर्मसार हो गये और हाथ जोड़ कर हाईकमान के चरणों में बिछ गये। (हाईकमान के शीश महल में) अन्तिम आवरण पृष्ठ - राजनीति में जिन्हें निर्दलीय खड़े होने के टिकट नहीं मिल सके वैसे लोग व्यंग्यकार हो गये। दशकों से व्याप्त विद्रूपताएँ यकायक बासी हो गयीं। धृतराष्ट्र के अन्धत्व की बात करना पाप हो गया। हाफ़-लाइनर, वन लाइनर और चुटकुले व्यंग्य का दर्जा पा गये। साहित्यिक पत्रिकाएँ कोरोनावास में अदृश्य हो गयीं और कुछ तो परलोक सिधार गयीं। अख़बारों में व्यंग्य के सब्जी बाज़ार सज गये। इस काल में हज़ारों टन व्यंग्य रचा गया। (हिन्दी साहित्य का कोरोना गाथाकाल) भगवान भला करे तुम्हारा सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, जो कविता का गिनती से पिण्ड छुड़ा गये और उसे स्वतन्त्रता दिला दी, अन्यथा आज कविता कैलकुलस हो गयी होती, न लिखने वाले को समझ आती न पढ़ने वाले को। कम से कम आज की कविता अपने गुट के लोगों को तो समझ में आती है। (जिधर जगह उधर मात्रा) पार्टी ने एक व्हिप जारी कर उनकी आत्मा ले ली थी और पद दे दिया था, बिना आत्मा के उनका आभामण्डल अति भव्य हो गया था। उनकी आत्मा पार्टी की तिजोरी में बन्द थी पर रोज सोने का अण्डा देती थी। इससे उन्हें एक लाभ और मिला, उस तिजोरी पर उनका भी अधिकार हो गया था। यही बीजगणित वे दूसरों को समझा रहे थे—तुम हमें आत्मा दो, हम तुम्हें पद देंगे। ... (संविधान को कुतरती आत्माएँ)

EAN: 9789355183354

Languages: Hindi