Ashleelata Ka Hamala
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Author: Rajkishor
Binding: paperback
Release Date: 01-12-2011
EAN: 9789350003442
Languages: Hindi
Details: अश्लीलता की समस्या उतनी ही पुरानी है जितना सभ्यता का इतिहास। जुगुप्सा में एक ख़ास तरह का रस होता है। लेकिन जो चीज़ आज हमारे सामने है, वह सिर्फ़ अश्लीलता नहीं, बल्कि उसकी बज़ारू व्यापकता और उसके आक्रामक तेवर हैं। अपसंस्कृति की इस आंधी ने नारी देह को ख़ासतौर से अपना निशाना बनाया है, पर पुरुष भी उससे अछूता नहीं है। क्या यह यौन क्रांति है, जो हमें हानिकर वर्जनाओं से मुक्त करेगी या कामुकता की नींव पर टिकी व्यापारिक सभ्यता का निष्ठुर प्रहार, जो हमारी कोमल भावनाओं के साथ अहर्निश खिलवाड़ कर रहा है? बेशक यह एक नयी परिघटना है, जिसे श्लील-अश्लील के पुराने विवादों से नहीं समझा जा सकता। कभी अश्लील एक प्रकार के सार्थक विद्रोह का माध्यम भी था, लेकिन आज यह सिर्फ़ मुनाफ़े की संस्कृति का वाहक है। यानी मनुष्य का मिज़ाज एक स्वाभाविक प्रक्रिया में बदल नहीं रहा है, बल्कि उसे एक कृत्रिम और सुनियोजित अभियान के तहत बदला जा रहा है। अतः अश्लीलता के इस हमले को एक व्यापक आर्थिक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में ही समझा जा सकता है और तभी उसके खिलाफ़ कोई कारगर रणनीति बनाई जा सकती है। ख़तरा यह भी है कि अश्लीलता की इस बाढ़ का प्रतिवाद करने के नाम पर हम दकियानूसी और प्रतिक्रियावाद का समर्थन न करने लगें। हमें भूलना नहीं चाहिए कि प्रेम और सौंदर्य उच्चतम मानव मूल्य हैं और जो संस्कृति जितनी समृद्ध होती है, उसमें इन मूल्यों का उतना ही उत्कर्ष दिखाई पड़ता है। अतः चुनौती यह है कि मानव मुक्ति के स्वप्न को बरकरार रखते हुए विकृतियों की संस्कृति से कैसे संघर्ष किया जाए, यह पुस्तक इस दिशा में मददगार साबित होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।

