Antrangta Ki Bheetari Parten
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Author: Dr. Jasvindar Kaur Bindra
Brand: Vani Prakashan
Edition: First Edition
Features:
- Vani Prakashan
Binding: hardcover
Number Of Pages: 192
Release Date: 01-12-2015
EAN: 9789350008089
Package Dimensions: 9.1 x 6.6 x 1.1 inches
Languages: Hindi
Details: सम्बन्धों का नाम ही समाज है। समाज से आगे फिर यह सिलसिला चलता ही जाता है। समाज, देश से बढ़ते अन्तर्देशीय होते हुए ही आज सारी दुनिया ‘ग्लोबल विलेज' में तब्दील हो गयी है। देखा जाये तो, सम्बन्ध ही सृष्टि का मूल है, लगातार जारी सम्बन्धों, रिश्ते-नातों का अनवरत सिलसिला जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी मनुष्यों को आपस में जोड़ता है। मगर यह अन्तरंग सम्बन्ध.....? ज़ाहिर-सी बात है, आदम-हव्वा के पहले ‘अन्तरंग सम्बन्ध' ने ही इस सृष्टि का आगाज़ किया, इसलिए जब भी सम्बन्धों की बात की जाती है तो पहला सम्बन्ध आदिम स्त्री-पुरुष का ही स्वीकार किया जाता है। यह सम्बन्ध न सिर्फ़ मानव-जाति का आरम्भ है बल्कि जीवन के नैसर्गिक सुख का शिखर भी है। स्त्री-पुरुष में शारीरिक मिलन को कई तरह से परिभाषित किया गया है, जिसमें इसे चरमोत्कर्ष आनन्द की प्राप्ति भी कहा गया है, जिसमें असीम सुख में पलों के पश्चात् एक शून्य, एक अनन्तता का अहसास भी होता है, जो मनुष्य को विराटता से जोड़ देने की भी असीम क्षमता रखता है। -डॉ. जसविन्दर कौर बिन्द्रा