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Author: Rangeya Raghav

Brand: Vani Prakashan

Edition: 2nd

Features: Vani Prakashan, New Delhi

Binding: hardcover

Number Of Pages: 200

EAN: 9789350005057

Package Dimensions: 8.5 x 5.6 x 0.5 inches

Languages: Hindi

Release Date: 16-09-2023

Details: प्रतिदान - महाभारत के पात्रों और घटनाओं पर हिन्दी ही नहीं, अन्य भारतीय भाषाओं में भी महत्त्वपूर्ण उपन्यास लिखे गये हैं। इन सब के बीच रांगेय राघव का प्रस्तुत उपन्यास 'प्रतिदान' का विशेष महत्त्व है। 'प्रतिदान' माध्यम से प्राचीन भारत के इतिहास तथा संस्कृति के विशेषज्ञ लेखक ने द्रोण की दरिद्रता से उसके वैभव की कथा कही है । द्रोण एक विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न ब्राह्मण था । लेकिन अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद जब उसने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया, तो उसके पास साधनों का दारुण अभाव था। उस समय तक ब्राह्मण विद्वान क्षत्रिय राजाओं की सेवा स्वीकार कर सम्पन्न जीवन जीना शुरू कर चुके थे, पर द्रोण को यह स्वीकार्य नहीं था। ब्राह्मण सत्ता के साथ किसी प्रकार का समझौता करना उसे अपनी गरिमा के विरुद्ध लगता था । फलस्वरूप उसे निरन्तर अभाव और उपेक्षा का जीवन जीना पड़ा। जब उसका पुत्र अश्वत्थामा एक कटोरी दूध तक के लिए बिलखने लगा, तब द्रोण टूट गया। वह अपना गाँव छोड़ कर अपने सहपाठी राजा द्रुपद से सहायता माँगने के लिए पांचाल पहुँचा, तो द्रुपद भी उसका घोर अपमान किया। दरिद्रता और अपमान की पीड़ा ने द्रोण को कुरु वंश के राजकुमारों का शिक्षक बनने को बाध्य कर दिया। पांडव और कौरव उससे शस्त्र का ज्ञान प्राप्त करने लगे । इस बीच एकलव्य, कर्ण आदि के अनेक रोमांचकारी प्रसंग घटित होते हैं और अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के लिए द्रोण को अनेक छल करने पड़ते हैं। अन्त में, अर्जुन ही द्रुपद को रस्सियों से बाँध कर गुरु द्रोण के पैरों पर झुकवाता है और द्रोण की प्रतिशोध भावना तृप्त होती है। रांगेय राघव का उद्देश्य सिर्फ कहानी कहना नहीं है। उन्होंने इसके माध्यम से महाभारत के प्रारम्भिक काल को, उसकी तमाम विविधता और जटिलता के साथ, प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। इस प्रक्रिया में उन्होंने अनेक मिथक तोड़े हैं और अनेक भ्रमों का निवारण किया है। लेकिन 'प्रतिदान' अन्ततः एक उपन्यास ही है लेखक के शब्दों में 'महाभारतकालीन पौराणिक पृष्ठभूमि पर एक अर्वाचीन उपन्यास' ।