Ladki Jo Dekhti Palatkar
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Author: Kshama Sharma
Brand: Vani Prakashan
Edition: Second
Features:
- Vani Prakashan
Binding: Hardcover
Number Of Pages: 200
Release Date: 01-12-2014
Details: Ladki Jo Dekhti Palatkar
EAN: 9789350007310
Package Dimensions: 8.5 x 5.4 x 0.6 inches
Languages: Hindi
लड़की जो देखती पलटकर -
साहित्य के हर दौर में कुछ लेखक ऐसे होते हैं जो प्रचलित फ़ैशनों की रौब में नहीं आते और अपनी अलग लीक बनाते हैं। इस आत्मविश्वास के पीछे यथार्थ की उनकी अपनी समझ और उस समझ पर भरोसा होता है। हमारे समय में क्षमा शर्मा ऐसी ही कहानीकार हैं। यह कहना सपाटबयानी होगी कि उनकी कहानियों में शहरी जीवन के छोटे-छोटे टुकड़े प्रतिबिम्बित होते हैं। असल बात है, जो वे देखती और दिखाती हैं, उसके प्रति उनका मानवीय और उदार नज़रिया। इस नज़रिये में किसी क़िस्म की भावुकता या लिजलिजेपन के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन उनकी कलात्मक तटस्थता उन्हें किसी तरह की दूरी या क्रूरता की ओर भी नहीं ले जाती। वे संक्रमण की पीड़ा को समझती हैं, पर उसके आगे घुटने नहीं टेकतीं। इसी तरह वे समकालीन आधुनिकता की चीरफाड़ करते हुए भी रूढ़िग्रस्तता या कालबाह्य मूल्यों को हसरत की निगाह से नहीं देखतीं।
क्षमा शर्मा के इस रचनात्मक ताप का एक उल्लेखनीय परिणाम ऐसे स्त्री पात्र हैं जो स्वतन्त्रता के साथ जीने की उमंग से भरपूर हैं। वे तथाकथित सामाजिक मर्यादाओं से टकराती हैं और अपना रास्ता ख़ुद बनाती हैं। ज़िन्दगी से धोखा खाने के बाद भी उनकी आँच मन्द नहीं होती और वे फिर-फिर जोख़िम उठाती हैं। विफलताएँ उन्हें पस्त भले कर दें, पर तोड़ नहीं पातीं। और फिर एक व्यंग्य भरी हँसी तो है ही, जो उनके अनुभवजन्य सयानेपन की अभिव्यक्ति के रूप में सामने आता है। मज़ेदार बात यह है कि क्षमा जी ने कुछ ऐसे पुरुष पात्रों का भी सृजन किया है जिनमें परम्परा के ज़हर को पचा कर नये रास्तों पर चलने की बेचैनी दिखाई देती है।
जो एक और चीज़ क्षमा शर्मा के कथा लेखन को विशिष्ट बनाती है वह है उपभोक्तावाद से गहरी वितृष्णा और पर्यावरण से परिवार जैसा प्रेम। यहाँ पेड़-पौधे भी जीवित पात्र बन जाते हैं, जिनके अस्तित्व की लड़ाई में मनुष्य सहभागी बनता है। कहानीकार की नज़र से वह पाखण्ड भी छिपा नहीं रह पाता जो एक ओर