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Author: Osho

Brand: Diamond Books

Binding: Paperback

Number Of Pages: 256

Details: कस्तूरी कुंडल बसै।

कबीर ने बड़ा प्यारा प्रतीक चुना है । जिस मंदिर की तुम तलाश कर रहे हो, वह तुम्हारे कुंडल में बसा है; वह तुम्हारे ही भीतर है; वह तुम ही हो । और जिस परमात्मा की तुम मूर्ति गढ़ रहे हो, उसकी मूर्ति गढ़ने की कोई जरूरत ही नहीं; तुम ही उसकी मूर्ति हो । तुम्हारे अंतर-आकाश में जलता हुआ उसका दीया, तुम्हारे भीतर उसकी ज्योतिर्मयी छवि मौजूद है। तुम मिट्टी के दीये भला हो ऊपर से, भीतर तो चिन्मय की ज्योति है । मृण्यम होगी तुम्हारी देह; चिन्मय है तुम्हारा स्वरूप। मिट्टी के दीये तुम बाहर से हो; ज्योति थोड़े ही मिट्टी की है। दीया पृथ्वी का है; ज्योति आकाश की है। दीया संसार का है; ज्योति परमात्मा की है।

पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:

* काम, क्रोध और लोभ से मुक्ति के उपाय

* मान और अभिमान में क्या फर्क है?

* श्रद्धा का क्या अर्थ है ?

* संकल्प का क्या अर्थ है ?

* धर्म और संप्रदाय में क्या भेद है ?

* जीवन का राज कहां छिपा है ?

EAN: 9789351656326

Package Dimensions: 8.4 x 5.5 x 0.7 inches

Languages: Hindi