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Dhyan aur Samadhi [Hindi]

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Author: OSHO SHAILENDRA

Brand: Oshodhara

Binding: paperback

Number Of Pages: 190

Release Date: 01-03-2013

Details: शीर्षक के अंतर्गत संकलित हैं आध्यात्मिक वार्ताएं। किसी ने पूछा: मेरा 11 वर्षीय पुत्र भी यहां के कार्यक्रम में भाग ले सकता है? उत्तर मिला- अवश्य। असल में सवाल पूछना चाहिये बड़े लोगों के बारे में, कठिनाई तो उन्हें आती है! बच्चों को तो बहुत आसानी से ध्यान घट जाता है। न उनके पास अहंकार है, न ज्ञान रूपी कूड़े से उनकी खोपड़ी भरी है। और अभी-अभी वे नाद को भूले हैं... थोड़े समय पहले ही! उनको स्मरण दिलाना बहुत आसान है। बड़े लोगों को प्रभु-स्मरण दिलाना कठिन है। किसी अन्य जिज्ञासु ने सवाल पूछा- भगवान को पाने की दौड़ हेतु समय कहाँ से निकालें? संसार में लोग पहले से ही इतने व्यस्त हैं। जवाब मिला- प्रभु हमसे पृथक, दूर नहीं, बल्कि हमारी ही आंतरिक सत्ता है। परमात्मा यानी परम+आत्मा, ‘दि अल्टीमेट सेल्फ’ आत्मा की परम अवस्था। उसे जानने के लिए केवल अंतर्मुखी होकर खुद के प्रति जागना है। दौड़ना नहीं, ठहरना है। कुछ नया पाना नहीं, बस जानना है उसे जो मिला ही हुआ है। भगवान कोई उपलब्धि या Achievement नहीं है, खुद के अंदर खुदा का अहसास, भगवत्ता का अनुभव, सेल्फ-रियलाइजेशन है। व्यस्तता और समय का सवाल नहीं, समयातीत जागरूकता में डूबना उसकी विधि है। इसलिए खोजना नहीं, जीना है। पाना नहीं, पीना है। ईश्वर की परंपरागत व्यक्तिवाची धारणा है कि वह कहीं दूर सातवें आसमान में, स्वर्ग में स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान है। ऐसी बचकानी धारणा की वजह से इस प्रकार के निरर्थक प्रश्न पैदा होते हैं। ईश्वर यानी ओंकार का स्वर। ध्यान यानि इस नाद के प्रति जागृति। समाधि यानि अपनी अंतरात्मा के इस संगीत में डुबकी।

EAN: 9789385200441