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Hindi Sahitya Ki Aadhi Aabadi : Poora Itihas

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Author: Shubha Srivastava

Brand: Vani Prakashan

Edition: First Edition

Binding: Paperback

Number Of Pages: 328

Release Date: 16-06-2025

EAN: 9789369443246

Languages: Hindi

"डॉ. शुभा श्रीवास्तव साहित्य की गम्भीर अध्येता एवं सुधी समीक्षक के रूप में एक चर्चित नाम है। वर्तमान समय में कोई भी पत्रिका ऐसी नहीं है जिनमें स्त्री रचनाकारों पर इनका आलोचनात्मक लेख देखने को नहीं मिलता है। ‘हिन्दी साहित्य की आधी आबादी पूरा इतिहास’ पुस्तक, इतिहास पुस्तक की नीरसता के पूर्वाग्रहों को तोड़ती है। इसमें इतिहास के ऐसे औज़ार मिलेंगे जो स्त्री साहित्य के इतिहास को बोझिल नहीं बनाते हैं बल्कि स्त्री साहित्य के इतिहास को नये साँचे में ढालते हैं। यहाँ पर इतिहास का ब्यौरा नहीं है बल्कि स्त्री साहित्य के इतिहास पर नवीन विचारधारा, नवीन शोध, तथ्यपरक सामग्री शामिल है जो रोचक व ज्ञानवर्धक है। हिन्दी साहित्य में स्त्री साहित्य की उपेक्षा कोई नयी बात नहीं है परन्तु इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि इस दिशा में कुछ कार्य ही नहीं हुआ है परन्तु ये कार्य पूर्ण नहीं कहे जा सकते हैं। कुछ बिखरे कार्यों और कुछ अछूते कार्यों का समन्वित रूप यह पुस्तक है। ‘हिन्दी साहित्य की आधी आबादी पूरा इतिहास’ पुस्तक स्त्री लेखन को लेकर लिखी गयी स्त्री साहित्य के इतिहास की प्रथम कृति तो नहीं है परन्तु पूर्ण कृति अवश्य है। लेखिका ने इसे आधी आबादी का पूरा इतिहास कहा है जिससे यह सिद्ध होता है कि इसमें हिन्दी साहित्य के स्त्री इतिहास का मुकम्मल और सम्पूर्ण दस्तावेज़ उपलब्ध है। इस कृति में जहाँ आदिकालीन स्त्री साहित्य के प्रश्नों की टकराहट है वहीं मध्यकाल में स्त्री साहित्य को कमतर मानने की जो ग़लती इतिहास आज तक करता चला आया है इसका सटीक जवाब है। शुभा ऐसी इतिहासकार बनकर उपस्थित होती हैं जिसके माध्यम से मध्यकाल की स्त्री रचनाकार अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने सारे वैशिष्ट्य को बार-बार पाठक के समक्ष उपस्थित करती हैं जिसे इतिहास आज तक नकारता चला आया है। आधुनिक काल की समय सीमा अत्यन्त विस्तृत है परन्तु इस विस्तृत सीमा को तीन काल खण्डों में बाँटकर उसकी प्रवृत्तियों, विभिन्न रचनाकारों के वैशिष्ट्य को बख़ूबी निरूपित किया गया है। यह पुस्तक आधी आबादी का पूरा इतिहास इसलिए भी है क्योंकि इसमें समकालीन स्त्री रचनाकारों को भी पूरी गम्भीरता के साथ शामिल किया गया है। स्त्री साहित्य नयी कोपल में सन् 2000 से लेकर आज तक के स्त्री रचनाकारों के सन्दर्भ में चर्चा करना इसकी सम्पूर्णता का परिचायक है। हिन्दी साहित्य का बहुत सारा स्त्री साहित्य लोकगीतों में भी फैला हुआ है। लोकगीतों के माध्यम से स्त्री लेखन को पाठक के सम्मुख आना अपने आप में अनूठा कार्य है, साथ ही स्त्री साहित्य की सम्पूर्णता का परिचायक भी है। इतिहास लेखन के विस्तृत गाँव में शुभा का प्रवेश सुखद बयार के साथ गहरी आश्वस्ति भी देता है। पुस्तक का प्रकाशन स्त्री साहित्य को पूर्णता प्रदान करेगा इसकी आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है। —डॉ. राम सुधार सिंह वरिष्ठ समालोचक "