Loktantra Ke Sat Adhyay
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Author: Abhay Kumar Dubey
Brand: Vani Prakashan
Edition: 3rd
Binding: paperback
Number Of Pages: 222
Release Date: 01-01-2023
Details: "भारतीय लोकतंत्र के विकास का यह अनूठा अध्ययन विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सी.एस.डी.एस.) के समाज-वैज्ञानिकों द्वारा पिछले दस वर्ष में किये गये चिंतन-मनन का परिणाम है। पचास साल पहले इस देश ने लोकतंत्र को चुना था। सात अध्यायों में बँटी यह किताब बताती है कि इन पचास सालों में इस देश ने लोकतंत्र को कैसे अपनाया । लोकतंत्र के सात अध्याय में तकरीबन सभी प्रचलित व्याख्याओं से भिन्न प्रतिमानों का इस्तेमाल किया गया है। मसलन, जिस परिघटना की आमतौर पर राजनीति में जातिवाद कह कर निंदा की जाती है वह इस विमर्श की निगाह में जातियों का राजनीतिकरण है। एक आधुनिक समरूप राष्ट्र-राज्य में भारत के रूपांतरण की विफलता के इलजाम को ठुकराता हुआ यह आख्यान इस उम्मीद से परिपूर्ण है कि विविधता ही इस राष्ट्र के देह धारण की प्रमुख शर्त है और रहेगी। नेहरू युग के जिस अवसान को राजनीतिक स्थिरता के अंत और सतत संकट की शुरुआत के रूप में चिह्नित किया जाता है, उसकी यह पुस्तक लोकतांत्रिक राजनीति में व्यापक जनता की भागीदारी बढ़ने के प्रस्थान बिंदु के रूप में शिनाख्त करती है। आर्थिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में पूरी सफलता न मिलने की बिना पर भारतीय लोकतंत्र के विफल होने की प्रचलित घोषणाएँ करने की बजाय पुस्तक में तुलनात्मक अध्ययन के जरिये दिखाया गया है कि शुरुआती दो दशकों के मुकाबले वाद के वर्षों में जनसाधारण का भरोसा लोकतंत्र, उसकी शासन-पद्धति और उसकी संस्थाओं में बढ़ा ही है। लंबे अरसे से एक पार्टी को बहुमत न मिलने को राजनीतिक संकट का पर्याय मान लेने के बजाय यह विमर्श संकट के स्रोतों की खोज पाँच साल तक सरकार चला पाने लायक जन- वैधता उत्पन्न न हो पाने के कारणों में करने की कोशिश करता है। इस किताब के आलेख पढ़े-लिखे, मुखर और द्विज तबकों द्वारा लोकतांत्रिक राजनीति में अरुचि दिखाने के कारण हताश होने के बजाय प्रमाणित करते हैं कि पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, महिला और आदिवासी तबके उत्तरोत्तर चुनावी प्रक्रिया और दलीय प्रणाली में अपनी भागीदारी बढ़ाते जा रहे हैं। समतामूलक आदर्श की अनुपलब्धि से व्यथित प्रेक्षकों के विपरीत यह विमर्श दृढ़तापूर्वक लोकतंत्र का शोकगीत गाने से इंकार करता है और कर्मकांड-आधारित श्रेणीक्रम की समाज-व्यवस्था से रूपांतरित हो कर आधुनिक अर्थों में वर्ग-रचना की प्रक्रिया प्रारंभ होने की घोषणा करता है। अंतर्राष्ट्रीय संचार क्रांति और बाजार आधारित मध्यवर्गीय संस्कृति के बढ़ते वर्चस्व पर कोरा अफसोस करने के बजाय यह पुस्तक आश्वस्त करती है कि भारतीय समाज में इस परिघटना के प्रतिकार के लिए आवश्यक सामग्री अभी मौजूद है। दुनिया के पैमाने पर मध्यमार्गी राज्य के प्रभाव में आयी गिरावट से बिना घबराये हुए अपने उपसंहार में यह नया विमर्श वर्ग, जातीयता और नारी मुक्ति के उभरते सवालों के आस-पास गोलबंदी करने वाले आंदोलनकारी युवक-युवतियों के हरावल में भारतीय लोकतांत्रिक उद्यम की पुनर्रचना होते हुए देखता है।"
EAN: 9789387024342
Package Dimensions: 8.3 x 5.5 x 0.6 inches
Languages: Hindi

