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Shikanje Ka Dard

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Author: Dr. Sushila Takbhoure

Brand: Vani Prakashan

Edition: 3rd

Features: Vani Prakashan, New Delhi

Binding: hardcover

Number Of Pages: 304

Release Date: 01-03-2023

EAN: 9789350007198

Package Dimensions: 8.6 x 5.3 x 0.9 inches

Languages: Hindi

Details: शिकंजा यानी पंजा, जिसकी जकड़न में रहकर कुछ कर पाना कठिन हो । शिकंजा यानी कठघरा जिसमें कैद होकर उसके बाहर जाना कठिन हो । शब्दकोश में दिए अर्थ के अनुसार शिकंजे का अर्थ दबाने, कसने का यंत्र है। शिकंजे का अर्थ एक प्रकार का प्राचीन यंत्र है जिसमें अपराधी की टाँग कस दी जाती है। शिकंजा वह यंत्र है जिसमें धुनकने के पहले रुई को कसा जाता है। शिकंजे का अर्थ कोल्हू भी है। जिस तरह किसी ताकतवर को शिकंजे में जकड़कर उसकी पूरी ताकत को नगण्य बना दिया जाता है, उसी तरह मुझे भी सामाजिक जीवन की मनुवादी विषमता ने, वर्णवादी- जातिवादी समाज व्यवस्था ने शिकंजे में जकड़कर रखा, जिसका परिणाम पीड़ा दर्द, छटपटाहट के सिवा कुछ नहीं है। सदियों के मूक मानव अब बोलने लगे हैं, अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे हैं, प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए अपनी व्यथा-कथा लिखने लगे हैं। फिर भी, क्या प्रत्येक दलित पीड़ित को उसके मानवाधिकार मिल सके ? अभी भी दलित शोषण की घटनाएँ क्या नहीं घटती हैं? विषमतावादी भारतीय समाज में जातिभेद, ऊँच-नीच की भावनाएँ क्या अब नहीं हैं? 'शिकंजे का दर्द' में संताप है दलित होने का, स्त्री होने का। इसमें शोषित, पीड़ित, अपमानित, अभावग्रस्त दलित जीवन की व्यथा है। स्त्री होना ही जैसे व्यथा की बात है। चाहे हमारा देश हो या विश्व के अन्य देश, हर जगह शोषण उत्पीड़न का शिकार स्त्री ही रही है। जिस देश में वर्णभेद, जातिभेद की कलुषित परम्पराएँ हैं वहाँ दलित स्त्री शोषण की व्यथा और भी गहरी हो जाती है। सदियों से तिरस्कृत और अभावग्रस्त परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर किये गये दलित जीवन की व्यथा-कथा का दर्द 'शिकंजे के दर्द' में समाहित है। शिकंजे का दर्द' लिखने का उद्देश्य दर्द देने वाले शिकंजे को तोड़ने का प्रयास है।