Dilip Kumar : Wajood Aur Parchhaien
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Author: Udaytara Nayar
Brand: Vani Prakashan
Edition: First Edition
Features:
-
Language Published: Hindi
Binding: hardcover
Number Of Pages: 436
Release Date: 01-01-2024
EAN: 9789350729434
Package Dimensions: 9.9 x 6.6 x 1.2 inches
Languages: Hindi
Details: दिलीप कुमार (युसूफ खान), जिन्होंने हिन्दी सिनेमा में 1940 के दशक में एक नौसिखिया के रूप में शुरुआत की, ने बहुत ही कम समय में स्टारडम (नायकत्व) के शिखर को छुआ । अपने 60 वर्ष के लम्बे फ़िल्मी कैरियर में उन्होंने अपनी रचनात्मक योग्यता, दृढ़ निश्चय, मेहनत और अनोखे अन्दाज़ से एक के बाद एक हिट फ़िल्मों में मन्त्रमुग्ध कर देने वाला प्रदर्शन किया। इनकी नकल करने वाले असंख्य हैं, लेकिन वास्तविक तो केवल एक ही है जिसने अपने समय का भरपूर आनन्द लिया है। इस अनूठी पुस्तक में दिलीप कुमार की जन्म से लेकर अब तक की जीवन-यात्रा का वर्णन किया गया है। इस प्रक्रिया में उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी बातचीत और सम्बन्धों - जो व्यापक स्तर पर विविध लोगों से रहे हैं और इनमें केवल पारिवारिक ही नहीं, अपितु फ़िल्मी दुनिया से जुड़े लोगों के साथ-साथ राजनीतिज्ञ भी शामिल हैं-का स्पष्ट रूप से विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। वह अनुभव करते हैं कि उनके बारे में जो बहुत कुछ लिखा जा चुका है, वह मिथ्या और भ्रामक है। वह स्पष्ट रूप से बताते हैं कि उन्होंने कैसे सायरा बानो से शादी की, जो कि एक परीकथा की तरह है। दिलीप कुमार उस घटना के बारे में बताते हैं, जिससे उनकी ज़िन्दगी बदल गयी : बॉम्बे टॉकीज़ की देविका रानी से उनकी मुलाकात होना और उनके द्वारा उन्हें फ़िल्म में अभिनय का आमन्त्रण दिया जाना। उनकी पहली फ़िल्म 'ज्वार भाटा' (1944) थी। वह विस्तारपूर्वक बताते हैं कि उन्हें किस प्रकार सीखना पड़ा और कैसे उन्होंने अपना अभिनय-सम्बन्धी अन्दाज़ बनाया जिसने उन्हें अपने समकालीनों से बिल्कुल अलग कर दिया। इसके बाद उनकी फ़िल्मों, जैसे- 'जुगनू', 'शहीद', 'मेला', 'अन्दाज़', 'दीदार', 'दाग' और 'देवदास' के साथ-साथ उनका क़द भी बढ़ता गया। इन फ़िल्मों में उन्होंने बड़ी तेज़ी से 'ट्रेजेडियन' के रूप में भूमिका निभाई, जिससे उनकी मानसिकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। उन्होंने एक ब्रिटिश (अंग्रेज़) मनोचिकित्सक से परामर्श किया, जिसने उन्हें हास्य-व्यंग्य की भूमिका निभाने की सलाह दी।. फ़िल्म 'आज़ाद' और 'कोहिनूर' के अलावा 'नया दौर' में किया गया उनका हास्य से भरपूर अभिनय प्रभावशाली रहा। तब उन्होंने अनेक फ़िल्मों, जैसे- 'गंगा-जमना', 'लीडर', 'दिल दिया दर्द लिया', 'राम और श्याम', 'आदमी', 'संघर्ष', 'गोपी', 'सगीना' और 'बैराग' आदि में गम्भीर और दिल गुदगुदाने वाले किरदार निभाए । आगे चलकर उन्होंने फ़िल्मों से पाँच वर्ष का विराम लिया और फिर अपनी दूसरी पारी 'क्रान्ति' (1981) से शुरू की, जिसके बाद वे अनेक हिट फ़िल्मों में दिखाई दिये, जैसे- 'विधाता', 'शक्ति', 'मशाल', 'कर्मा', 'सौदागर' और 'क़िला' । दिलीप कुमार को अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी पुरस्कृत किया गया है जिसमें आठ बार फ़िल्मफेयर 'बेस्ट एक्टर अवार्ड' है, जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। उन्हें 'पद्मभूषण' और 'दादासाहेब फालके अवार्ड' जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों के साथ-साथ 'निशान-ए-इम्तियाज़' (पाकिस्तान का उच्च नागरिक पुरस्कार) से भी नवाज़ा गया है। उन्होंने बड़ी शिष्टता से अनेक सामाजिक कार्यों में बखूबी भूमिका निभाई है। लम्बे समय से प्रतीक्षारत यह 'आत्मकथा' दिलीप कुमार से जुड़े वास्तविक तथ्यों को अपने में सम्पूर्ण रूप से समेटे हुए है, जो न केवल एक श्रेष्ठ अभिनेता रहे हैं बल्कि कला पारखी; उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेजी साहित्य के आदर्श पाठक; ओजस्वी वक्ता एवं उच्चकोटि के नकलची और श्रेष्ठ नर्तक रहे हैं।

