शनि संहिता: Shani Samhita
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Book Detail:
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Author: Mridula Trivedi, T. P. Trivedi
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Publisher: Alpha Publications
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Binding: Hardcover
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Number of Pages: 549
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ISBN: N/A
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Languages: Sanskrit Text with Hindi Translation
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Edition: 2012
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Dimensions: 21.5 cm x 14 cm
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Weight: 800 gm
Book Descriptionग्रन्थ-परिचय
शनि शक्ति के संत्रास तथा त्रासदी से आतंकित व्यथित पीड़ित भयाक्रान्त मानव की विपुल वेना विपत्ति विकृति विनाश व्याधि विषमता विघटन विसंगतिपूर्ण विपरीत स्थितियों परिस्थियों के अवांछित अनापेक्षित अनावश्यक सम्भावनाओं के विषैले दंश और कँटीले पथ की पीड़ा प्रदायक चुभन के अन्तरंग आभास के अवलोकन और अवगाहन करने के उपरान्त पापाक्रान्त शनि की साढ़ेसाती अष्टम शनि और शनि की लघु कल्याणी ढैया आदि से संतप्त जीवन को विमुक्त करने के निमित 'शनि संहिता' का प्रसादामृत प्रबुद्ध ज्योतिष प्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत है, जिसमें सन्निहित अनुभूत अद्भुत अमोघ एवं दुर्लभ साधना परिहार परिज्ञान सम्पादन विधान एवं सुगम साधना प्रावधान का अवलोकन अध्ययन अनुसरण और अभ्यास शनि संतप्त जातक-जातिकाओं के जीवन को अलौकिक आलोक से आनन्दित और आह्लादित करने हेतु नैमित्तिक साधनाओं का परम पावन प्रांजल पीयूष है।
'शनि संहिता’ उन सशक्त शाश्वत संकल्पों का सुरभित सेतु है, जिसकी संरचना शनि ग्रह सन्दर्भित परिहार परिज्ञान शास्त्रसंगत सधन सामग्री के अभाव में अंकुरित और प्रस्फुटित हुई है। 'शनि संहिता' अभीष्ट संसिद्धि के संसुप्त संज्ञान की जागृति का अभिनव अनुसंधान है जिसमें शनि सन्दर्भित अन्याय अरिष्टों अनिष्टों अवरोधों अप्रत्याशित आतंक विविध व्यथाओं विपत्ति प्रदायक व्याधियोंसे आक्रान्त जातक-जातिकाओं के दुर्दमनीय दारूण दु:खों और दुर्गति का शास्त्रानुमोदित सुगम समाधान तथा अनुकूल विधान अखण्डित आस्थाओं को अविचलित आधार प्रदान कर देने वाले परिहार परिज्ञान, दुर्लभ स्तोत्र तथा साधनाएँ, मंत्र प्रयोग और साधना विधान शनि दान: दिव्य अनुष्ठान के अतिरिक्त शताधिक सुगम सांकेतिक साधनाएँ और उनके प्रतिपादन के विधिविधान आदि अट्ठाइस अध्यायों में सुरूचिपूर्ण स्वरूप में सुव्यवस्थित किए गए हैं। 'शनि संहिता' के परिशिष्ट में 'दस महाविद्या स्तोत्र' 'कर्मज व्याधिनाशन ऋग्वेदीय मन्त्र' 'सुदर्शन चक्र मन्त्र साधना' तथा 'मृत्युंजय मन्त्र: विविध प्रकार' के समीचीन समायोजन ने इस कृति की उपयोगिता एवं महत्त्ता में वृद्धि की है। 'शनि संहिता' समस्त जागरूक ज्योतिष प्रेमियों के लिए अनुकरणीय, संग्रहणीय और सराहनीय शोध प्रबन्ध है।
संक्षिप्त परिचय
श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश की प्रथम पक्ति के ज्योतिषशास्त्र के अध्येताओं एव शोधकर्ताओ में प्रशंसित एवं चर्चित हैं । उन्होने ज्योतिष ज्ञान के असीम सागर के जटिल गर्भ में प्रतिष्ठित अनेक अनमोल रत्न अन्वेषित कर, उन्हें वर्तमान मानवीय संदर्भो के अनुरूप संस्कारित तथा विभिन्न धरातलों पर उन्हें परीक्षित और प्रमाणित करने के पश्चात जिज्ञासु छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करने का सशक्त प्रयास तथा परिश्रम किया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने देशव्यापी विभिन्न प्रतिष्ठित एव प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओ मे प्रकाशित शोधपरक लेखो के अतिरिक्त से भी अधिक वृहद शोध प्रबन्धों की सरचना की, जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि, प्रशंसा, अभिशंसा कीर्ति और यश उपलव्य हुआ है जिनके अन्यान्य परिवर्द्धित सस्करण, उनकी लोकप्रियता और विषयवस्तु की सारगर्भिता का प्रमाण हैं।
ज्योतिर्विद श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश के अनेक संस्थानो द्वारा प्रशंसित और सम्मानित हुई हैं जिन्हें 'वर्ल्ड डेवलपमेन्ट पार्लियामेन्ट' द्वारा 'डाक्टर ऑफ एस्ट्रोलॉजी' तथा प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट द्वारा देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद' तथा 'सर्वश्रेष्ठ लेखक' का पुरस्कार एव 'ज्योतिष महर्षि' की उपाधि आदि प्राप्त हुए हैं । 'अध्यात्म एवं ज्योतिष शोध सस्थान, लखनऊ' तथा 'द टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी, दिल्ली' द्वारा उन्हे विविध अवसरो पर ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास ज्योतिष वराहमिहिर, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्य विद्ममणि ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एव ज्योतिष ब्रह्मर्षि ऐसी अन्यान्य अप्रतिम मानक उपाधियों से अलकृत किया गया है ।
श्रीमती मृदुला त्रिवेदी, लखनऊ विश्वविद्यालय की परास्नातक हैं तथा विगत 40 वर्षों से अनवरत ज्योतिष विज्ञान तथा मंत्रशास्त्र के उत्थान तथा अनुसधान मे सलग्न हैं। भारतवर्ष के साथ-साथ विश्व के विभिन्न देशों के निवासी उनसे समय-समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं । श्रीमती मृदुला त्रिवेदी को ज्योतिष विज्ञान की शोध संदर्भित मौन साधिका एवं ज्योतिष ज्ञान के प्रति सरस्वत संकल्प से संयुत्त? समर्पित ज्योतिर्विद के रूप में प्रकाशित किया गया है और वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में सह-संपादिका के रूप मे कार्यरत रही हैं।
संक्षिप्त परिचय
श्रीटीपी त्रिवेदी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी एससी के उपरान्त इजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की एवं जीवनयापन हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद मे सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत होने के साथ-साथ आध्यात्मिक चेतना की जागृति तथा ज्योतिष और मंत्रशास्त्र के गहन अध्ययन, अनुभव और अनुसंधान को ही अपने जीवन का लक्ष्य माना तथा इस समर्पित साधना के फलस्वरूप विगत 40वर्षों में उन्होंने 460 से अधिक शोधपरक लेखों और 80 शोध प्रबन्धों की संरचना कर ज्योतिष शास्त्र के अक्षुण्ण कोष को अधिक समृद्ध करने का श्रेय अर्जित किया है और देश-विदेश के जनमानस मे अपने पथीकृत कृतित्व से इस मानवीय विषय के प्रति विश्वास और आस्था का निरन्तर विस्तार और प्रसार किया है।
ज्योतिष विज्ञान की लोकप्रियता सार्वभौमिकता सारगर्भिता और अपार उपयोगिता के विकास के उद्देश्य से हिन्दुस्तान टाईम्स मे दो वर्षो से भी अधिक समय तक प्रति सप्ताह ज्योतिष पर उनकी लेख-सुखला प्रकाशित होती रही । उनकी यशोकीर्ति के कुछ उदाहरण हैं- देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद और सर्वश्रेष्ठ लेखक का सम्मान एव पुरस्कार वर्ष 2007, प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट तथा भाग्यलिपि उडीसा द्वारा 'कान्ति बनर्जी सम्मान' वर्ष 2007, महाकवि गोपालदास नीरज फाउण्डेशन ट्रस्ट, आगरा के डॉ. मनोरमा शर्मा ज्योतिष पुरस्कार' से उन्हे देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी के पुरस्कार -2009 से सम्मानित किया गया । 'द टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी' तथा अध्यात्म एव ज्योतिष शोध संस्थान द्वारा प्रदत्त ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास, ज्योतिष वाराहमिहिर, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्यविद्यमणि, ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एवं ज्योतिष ब्रह्मर्षि आदि मानक उपाधियों से समय-समय पर विभूषित होने वाले श्री त्रिवेदी, सम्प्रति अपने अध्ययन, अनुभव एव अनुसंधानपरक अनुभूतियों को अन्यान्य शोध प्रबन्धों के प्रारूप में समायोजित सन्निहित करके देश-विदेश के प्रबुद्ध पाठकों, ज्योतिष विज्ञान के रूचिकर छात्रो, जिज्ञासुओं और उत्सुक आगन्तुकों के प्रेरक और पथ-प्रदर्शक के रूप मे प्रशंसित और प्रतिष्ठित हैं । विश्व के विभिन्न देशो के निवासी उनसे समय-समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं।