विष्णुधर्मोत्तरमहापुराणम् Vishnudharmottara Mahapuranam( 3 vol.)
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Book Detail
- Title: श्रीविष्णुधर्मोत्तरपुराण
- Author: श्री कपिलदेव नारायण
- Subject: पुराण
- Edition: 2015
- Publishing Year: 2015
- ISBN: 9788170804574
- Packing: 3 खंड
- Pages: 2305
- Dimensions: 20 x 24 x 10 cm
- Weight: 4133 g
- Binding: हार्ड कवर
- Publisher: (Not Provided)
- Language: संस्कृत एवं हिंदी
Book Description
श्रीविष्णुधर्मोत्तरपुराण हिंदू धर्मशास्त्रों में एक महत्वपूर्ण पुराण है, जिसे धर्मों का महाकोश कहा जाता है। इसे अग्निपुराण, गरुड़पुराण और नारदपुराण से भी अधिक विस्तृत और महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें समस्त विद्याओं, शास्त्रों और ज्ञान-विज्ञान का समावेश है, जिसके उद्धरण विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं।
मुख्य विषयवस्तु:
-
धर्म, ज्ञान और विज्ञान का समावेश –
- इसमें चित्र सूत्र, प्रतिमा शास्त्र, साहित्य शास्त्र, संगीत शास्त्र, नृत्य शास्त्र, छंद शास्त्र, काम शास्त्र, न्याय शास्त्र, कोश विद्या, काव्य शास्त्र, राज शास्त्र, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, शकुन शास्त्र, धनुर्वेद आदि विद्याओं का विस्तृत वर्णन है।
- यज्ञ, हवन, दान, पूजा, प्रतिष्ठा की विधियों का उल्लेख मिलता है।
-
हंसगीता एवं दार्शनिक विचार –
- हंसगीता में विविध धर्मों का विस्तृत वर्णन है।
- यह ग्रंथ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष (चतुर्विध पुरुषार्थ) की प्राप्ति में सहायक है।
- भगवद्भक्ति पर विशेष जोर दिया गया है।
-
भारतीय संस्कृति और समाज का दर्पण –
- भारतीय वाङ्मय की अनुपम निधि के रूप में इसे स्वीकार किया जाता है।
- इसमें भारतीय समाज की सभ्यता और संस्कृति का बीज रूप से लेकर विस्तृत रूप में वर्णन किया गया है।
- लोकजीवन के लिए यह ग्रंथ व्रत-उत्सव, पूजन-अर्चन और दैनिक जीवन की व्यवहारिक ज्ञान सामग्री प्रदान करता है।
-
अवतारवाद और संप्रदायों का समन्वय –
- यह ग्रंथ विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में सहिष्णुता और समन्वय का परिचायक है।
- इसमें वैष्णव, शैव, शाक्त, गाणपत्य और अन्य मत-सम्प्रदायों के विचारों को समाहित किया गया है।
- भगवान विष्णु के मत्स्य, कूर्म, वामन आदि अवतारों के साथ-साथ शिव महात्म्य का भी समावेश है।
-
महापुराणों, उपपुराणों और स्थलपुराणों का वर्गीकरण –
- इसमें महापुराणों, उपपुराणों और औपपुराणों के संख्यात्मक एवं संज्ञात्मक परिचय को समाहित किया गया है।
- विभिन्न पुराणों के पारस्परिक संबंधों और धर्मोत्तर पुराण के स्वरूप की व्याख्या की गई है।
पुस्तक की विशेषताएँ:
- संस्कृत मूल श्लोकों के साथ हिंदी अनुवाद और टीका
- विविध शास्त्रों, विद्याओं और धार्मिक विधानों का समावेश
- भगवद्भक्ति, योग, कर्म, ज्ञान और मोक्ष की व्याख्या
- भारतीय समाज, संस्कृति और परंपराओं का विश्लेषण
- अध्ययन-अध्यापन के लिए उपयुक्त विस्तृत ग्रंथ
किसके लिए उपयुक्त?
- सनातन धर्म, वेद-पुराण और भारतीय संस्कृति के शोधकर्ताओं के लिए
- धर्मशास्त्र, ज्योतिष, वास्तु, संगीत, साहित्य और अन्य विद्याओं के जिज्ञासुओं के लिए
- भगवद्भक्ति और हिंदू धर्मग्रंथों में रुचि रखने वाले साधकों के लिए
यह ग्रंथ धर्म, ज्ञान, विज्ञान और संस्कृति का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करता है और हिंदू धर्मशास्त्रों की समग्रता को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी ग्रंथ है।