Samajshastra: Vivechana Avam Pariprekshya (Sociology: Analysis and Perspective) (Hindi)
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Book Details:
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Author: राम आहूजा
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Binding: Paperback
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Number of Pages: 464
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Release Date: 01-01-2008
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ISBN: 9788131601761
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Cover: Paperback
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Dimensions: 8.4 x 5.5 x 0.8 inches
- Publisher: Rawat Publications
About the Book:
"समाजशास्त्र विवेचना एवं परिप्रेक्ष्य" इस पुस्तक का उद्देश्य समाजशास्त्र की महत्वपूर्ण अवधारणाओं को समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना है। यह पुस्तक कुल उन्नीस अध्यायों में समाजशास्त्र की मूलभूत अवधारणाओं जैसे समूह, प्रस्थिति, समाजीकरण, स्तरीकरण, सामाजिक परिवर्तन, विवाह, धर्म, राज्य, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और अन्य सामाजिक संस्थाओं की गहन व्याख्या करती है। क्लिष्ट सिद्धांतों और उनके आपसी संबंधों को सरल भाषा में, उदाहरणों और रेखाचित्रों के माध्यम से समझाया गया है, जिससे पाठकों को समाजशास्त्र के कठिन विषयों को समझने में आसानी हो।
पुस्तक में उद्धृत संदर्भ और विषय की स्पष्ट अभिव्यक्ति एक विशेष विशेषता है, जिससे इसकी प्रमाणिकता सुनिश्चित होती है। यह पुस्तक समाजशास्त्र के उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों, प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वाले छात्रों, और विषय में रुचि रखने वाले सामान्य पाठकों के लिए अत्यधिक उपयोगी है। हिंदी में स्तरीय सामग्री की कमी को पूरा करने के लिए यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
About the Author:
राम आहूजा राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे हैं और सेवानिवृत्ति के बाद भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद में वरिष्ठ फेलो के रूप में कार्य किया। उन्होंने विभिन्न संगठनों जैसे यू.जी.सी., आई.सी.एस.एस.आर., भारत सरकार के समाज कल्याण मंत्रालय, और विश्व बैंक द्वारा प्रायोजित कई शोध परियोजनाओं का निर्देशन किया। उनकी 70 से अधिक लेख और 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें "अपराधशास्त्र" को 1984 में गोविंदवल्लभ पंत पुरस्कार और "वायलेंस अगेन्सट वूमेन" पर कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा सुप्रभादेव गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।
मुकेश आहूजा ने राजस्थान विश्वविद्यालय से 1993 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की और वर्तमान में एस.एस. जैन सुबोध कॉलेज, जयपुर में समाजशास्त्र विभाग में कार्यरत हैं। उनके द्वारा लिखित दो पुस्तकें "विडोज़-रोल अडजस्टमेंट एंड वायलेंस" और "विवेचनात्मक अपराधशास्त्र" प्रकाशित हो चुकी हैं।