Cine Sansar Aur Patrakarita
Cine Sansar Aur Patrakarita is backordered and will ship as soon as it is back in stock.
Couldn't load pickup availability
Genuine Products Guarantee
Genuine Products Guarantee
We guarantee 100% genuine products, and if proven otherwise, we will compensate you with 10 times the product's cost.
Delivery and Shipping
Delivery and Shipping
Products are generally ready for dispatch within 1 day and typically reach you in 3 to 5 days.
Book Details
-
लेखक: रामकृष्ण
-
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
-
भाषा: हिंदी
-
संस्करण: -
-
आईएसबीएन: 8126312467
-
पृष्ठ संख्या: 196
-
कवर: हार्डकवर
-
आयाम: 8.3 x 5.9 x 0.8 इंच
-
प्रकाशन तिथि: 01 दिसंबर 2014
About the Book
सिने संसार और पत्रकारिता - यह पुस्तक रामकृष्ण के आत्मवृत्त का पूर्वार्द्ध है। इसका उत्तरार्द्ध "फ़िल्मी जगत में अर्धशती का रोमांच" 2003 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हुआ था। रामकृष्ण की क़लम न केवल लिखती है, बल्कि बोलती भी है। उनका रचनाशिल्प इस प्रकार है कि पात्र पाठक के सामने से ऐसे फिसलते रहते हैं कि पाठक को यह एहसास ही नहीं होता कि कब एक पात्र ने दूसरे की जगह ले ली। अपनी संस्मरण शैली में लिखने की विशेषता के कारण उनकी पुस्तकें पाठकों को उबाती नहीं, बल्कि उन्हें अपने अनुभवों का हिस्सा बना देती हैं।
इस पुस्तक में रामकृष्ण की संघर्ष यात्रा और फ़िल्म जगत के उन चरित्रों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने अपने समय में असाधारण महत्व हासिल किया था। लेखक ने फ़िल्मकारों, गीतकारों और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों की दुर्लभ झलकियों को प्रस्तुत किया है। इसके साथ-साथ, पाकिस्तान के फ़िल्मी धरातल का भी आकलन किया गया है। रामकृष्ण के संस्मरण केवल फ़िल्म जगत तक सीमित नहीं रहते, बल्कि इस पुस्तक में देश के राजनेताओं और समाजवेत्ताओं—जैसे आचार्य नरेन्द्रदेव, सम्पूर्णानन्द, वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेन्द्रप्रसाद, कृष्ण मेनन और फ़ीरोज़ गाँधी—की भी यादें साझा की गई हैं। इसके अतिरिक्त, प्रसिद्ध लेखक जैसे अमृतलाल नागर, धर्मवीर भारती और अक्षयकुमार जैन के अंतरंग प्रसंग भी पुस्तक का हिस्सा हैं।
About the Author
रामकृष्ण
रामकृष्ण एक प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार हैं, जिनका लेखन फ़िल्म जगत और पत्रकारिता के अनुभवों पर आधारित है। उनका रचनाशिल्प न केवल उनके व्यक्तिगत संघर्षों को उजागर करता है, बल्कि समाज और संस्कृति की परतों को भी खोलता है। उनके द्वारा लिखे गए संस्मरण पाठकों को एक नए दृष्टिकोण से भारतीय फ़िल्म जगत और पत्रकारिता की जटिलताओं को समझने का अवसर प्रदान करते हैं।

