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Barbala

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लेखक: वैशाली हल्दणकर
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
भाषा: हिंदी
ISBN: 9789350001325
कवर: हार्डकवर
संस्करण: प्रथम संस्करण
पृष्ठ संख्या: 220
रिलीज़ दिनांक: 01-01-2009
पैकेज आयाम: 8.6 x 5.6 x 0.8 इंच

पुस्तक के बारे में:
जैसे औरत पैदा नहीं होती, बल्कि बनाई जाती है, वैसे ही कोई लड़की बारबाला होती नहीं है, वह परिस्थितियों द्वारा बुरी तरह धुन दिए जाने के बाद ही इस रास्ते को अपनाती है। यथार्थ से सामना होते ही वह पाती है कि असली दुनिया उससे कहीं अधिक कठोर है। यह एक दुखभरी आत्मकथा है, मुंबई की एक बारबाला की, जो बचपन से यौन शोषण का शिकार हुई। वैवाहिक जीवन भी उसके लिए अधिक आतंककारी साबित हुआ। जीविका की तलाश में जब वह बारबालाओं की दुनिया में कदम रखती है, तो उसे जो अनुभव होते हैं, उनका बयान करते हुए लेखक वैशाली हल्दणकर की उंगलियाँ कांप उठती हैं।

यह केवल एक अकेली बारबाला की आपबीती नहीं है, बल्कि उन हजारों अभागी लड़कियों की दास्तान है, जिन्हें रोज़ी-रोटी के लिए शोषण, दमन और यातना का निरंतर शिकार होना पड़ता है। अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता को बार-बार कुचला जाता देख वे कभी शराब का सेवन करती हैं, तो कभी नशीली दवाओं की ओर मुड़ती हैं। पुस्तक की भूमिका में महाराष्ट्र की सामाजिक कार्यकर्ता और बारबालाओं की यूनियन बनाने वाली वर्षा काळे ने इस उद्योग का गहन विश्लेषण किया है, जिससे बारबालाओं की स्थिति को व्यापक दृष्टिकोण से समझने का अवसर मिलता है।