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Author: Amrish Puri

Brand: Vani Prakashan

Edition: First Edition

Features:

  • Vani Prakashan

Binding: paperback

Number Of Pages: 328

Release Date: 01-12-2010

EAN: 9789352291380

Package Dimensions: 9.4 x 6.0 x 0.9 inches

Languages: Hindi

Details: अमरीश पुरी हिन्दी नाटक और फिल्म जगत के एक लाजवाब अभिनेता थे। उनका ट्रेडमार्क हैटचौड़े कंधेऊँचा कदगहरी नजररोबदार आवाज और सबसे बढ़ कर सभी उपस्थितियों पर छा जाने वाली उपस्थिति भारतीय सिनेमा के इस अभूतपूर्व किरदार का सम्मोहन लंबे समय तक हमें आलोड़ित करता रहेगा। मोगांबो खुश हुआ और डांग कभी रांग नहीं होता ये संवाद फिल्म दर्शकों के बीच अमर हो गए हैं क्योंकि अमरीश पुरी अपने संवादों में अपनी दुर्धर्ष आत्मा फूँक देते थे। खलनायक बहुत हुए हैं परंतु खलनायकी को कला की ऊँचाई तक पहुँचाने वाला कलाकार एक ही हुआ-अमरीश पुरी। अमरीश पुरी पंजाब के उन रत्नों में हैं जिन्होंने अदम्य जिजीविषा और कठिन संघर्ष से अपने को सर्वोच्च शिखर तक पहुँचाया। शुरू के दशकों में जब वे हीरो बनने की लालसा लिये मुंबई पहुँचे तब वहाँ उनका स्वागत करने वाला कोई नहीं था। बहुत सारे असफल प्रयत्नों के बाद उन्होंने थियेटर की दुनिया में प्रवेश किया और उस दौर के महान निर्देशकों अब्राहम अलकाजी सत्यदेव दुबेगिरीश कर्नाड बादल सरकार तथा नाटककारों विजय तेंडुलकर और मोहन राकेश के साथ काम करते हुए बहुत-सी चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं का उत्कृष्ट अभिनय कर एक नए रंग अनुभव के प्रणेता बने। रंगमंच की यह समृद्ध विरासत फिल्म जगत में अमरीश पुरी का पाथेय बनी जिसके बल पर उन्होंने श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी के समानांतर सिनेमा में अपनी खास पहचान बनाई। इसके बाद अमरीश के सामने सफलता की सारी सीढ़ियाँ बिछी हुई थीं। उन्होंने तीन सौ से ज्यादा फिल्मों में काम किया अपने समय में सबसे ज्यादा पारिश्रमिक पाने वाले खलनायक बने और हॉलीवुड के विख्यात निर्देशक स्टीवन स्पिलबर्ग की फिल्म में काम कर अंतरराष्ट्रीय शोहरत हासिल की। ज्योति सभरवाल के साथ लिखी गई अमरीश पुरी की यह आत्मकथा संघर्ष और सफलता की एक प्रेरक और रंगारंग महागाथा है जिसके एक-एक पन्ने में जिंदगी साँस लेती है।